यह रहीम निज संग ले जनमत जगत ना कोय
बैर , प्रीत , अभ्यास जस होत होत ही होय
चाह गयी चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह
जिसको कछो ना चाहिए वे साहब के साह
बिगरी बात बने नहीं , लाख करे किं कोय
रहिमन फाटे दूध को माथे तो माखन होय
खैर , ख़ून ,खांसी , खुसी , बैर, प्रीत, मद्पान
रहिमन दाबे ना दबे जानत सकल जहाँ
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