Monday, October 8, 2007

रहीम के दोहे

यह रहीम निज संग ले जनमत जगत ना कोय
बैर , प्रीत , अभ्यास जस होत होत ही होय

चाह गयी चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह
जिसको कछो ना चाहिए वे साहब के साह

बिगरी बात बने नहीं , लाख करे किं कोय
रहिमन फाटे दूध को माथे तो माखन होय

खैर , ख़ून ,खांसी , खुसी , बैर, प्रीत, मद्पान
रहिमन दाबे ना दबे जानत सकल जहाँ

No comments: